शुक्रवार, 14 जून 2013

गर्मी छुट्टी डायरिज़ - ऐनक लगाकर पढ़ना ये चिट्ठियां (१)

कैसे कहूं कि इन दिनों कुछ लिखने को जी नहीं चाहता। कुछ है ही नहीं बताने को। ऐसी स्थिति आमतौर पर तब आती है जबकि अंदर कुछ गुबार भरा हो और निकलने का रास्ता न जानता हो। या फिर तब कि जब बहुत सुकून हो - इतना कि सुख-दुख, पाप-पुण्य, अच्छा-बुरा, सही-ग़लत, कुछ भी मायने न रखता हो। कोई भी बात तकलीफ़ न पहुंचाती हो, कोई भी ख़ुशी उतावली न करती हो। मन कमल का चिकना पत्ता हो गया है। कुछ ठहरता ही नहीं यहां...

क्या बांटूं फिर? क्या लिखूं चिट्ठी में? बस ये समझ लो कि सब कुशल-मंगल है और तुम्हारे लिए भी मंगलकामना है। मन के व्याकुल होने का इंतज़ार करती हूं, कि फिर लिखने को कोई बात होगी तब शायद...

फिलहाल बसंत पर लिखी गुरुदेव की कविता का एक अनुवाद पढ़ो जो अपनी खिड़की पर बैठकर जेठ की बिदाई और आषाढ़ की आमद के इंतज़ार में लटके पके हुए आमों को गिनते हुए एक दोपहर किया था मैंने। दो धृष्टता एक साथ - पहले तो कविता के अनुवाद की धृष्टता और दूसरी, मूल कविता से लेते हुए भी बसंत का लिंग बदल देने की। (बसंत प्रियतम ही तो है, जिसका इंतज़ार कभी शेष नहीं होता)

कविता का नाम याद नहीं, इंटरनेट से निकाला था कभी। इच्छा हो तो तुम भी कभी नाम निकाल लेना।   

इठलाता हुआ आया बसंत
अपनी शोभा-यात्रा के कोलाहल के साथ 
और, 
भर गया मेरा आंगन फूलों और कहकहों से 
वन में निकल आए नए पत्ते
चूमकर आसमान को उसने कर दिया था गहरा लाल। 


चुपचाप मिलने आया मुझसे 
कोई दूसरा वसंत 
बैठ गया मेरे कमरे के एक कोने में 
विचारमग्न। 

अनंत आकाश का किया मुआयना, बसंत ने 
उसकी निगाहें पहुंचीं ठीक वहीं जहां 
हरितिमा धुंधली होकर गुम हो जाती है नील रंग में 
और वसंत की गहरी, हैरान एकटक नज़र के आगे
हो जाती है एकरंग। 

Spring came in happy ruckus
With her clamorous cortege
Whereby,
Filling my yard with laughter and flowers
The forest with new leaves,
Painting deep scarlet kisses across the sky.

Quietly paid me a visit today
A very different spring.
Sat in the corner of my room
Pondering.

Surveyed the endless sky, spring did
Her gaze fixed to that spot, where
All the green faints and fades into blue
Becoming one under her deep, curious stare.

4 टिप्‍पणियां:

राजेश सिंह ने कहा…

सुन्दर रचना साझा करने के लिए आभार

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

जितनी सुन्दर कविता है, उतना ही सुन्दर है उसका फॉण्ट। कौन सा है?

divya ने कहा…

मन कमल का चिकना पत्ता हो गया है। कुछ ठहरता ही नहीं यहां...nice imagination ma'am...

बेनामी ने कहा…

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